Neelakshi Singh
Neelakshi Singh (born 17 March 1978) is an Indian novelist and short story writer in the Hindi language. She is known for her layered writing with multi faced characters. Exploring the beauty of ordinary and identifying the dark spots of life are the essence of her writing.
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“उपस्थिति सिर्फ मेरे कपड़ों की ही थी और मैं दरअसल एक सुनी सुनाई चीज भर थी”
All that existed in the world were my clothes, and I was actually just a hearsay.
घर एक कमरे का था। घर में एक कमरा था। सामान एक एक मिलाकर कई थे। वह घर की चौथाई भर जगह में रहती थी। बाकी जगह सामानों के लिए थी। वह लड़की कभी-कभी उन सामानों में भी रह लेती थी और अक्सर सामान भी उसके भीतर जगह बनाने लगते थे। यानी अब अगर कभी घर न भी रहता तो वह और घर के सामान, एक- दूसरे में जगह बनाकर फेरा- फेरी रह ले सकते थे। इस तरह से उनकी दुनिया में घर, बेघर हुआ सा ही रहता था।
Neelakshi Singh
The journey so far...
Neelakshi Singh
An Indian Hindi- language novelist, short-story and non-fiction writer
The author of several short stories, two novels and one non-fiction title. Translator of classical novel “The Ice Palace” in Hindi.
- Recipient of Sahitya Akademi Golden Jubilee Young Writers Award, Kalinga Book of the year award 2021, Valley of Words Award 2022
- Translation of fictions featured in English and German collections
- Main protagonist of the documentary film "Through the Eyes of Words" directed by Shweta Merchant, produced by NHK, Japan.
Storyline
- 2005
परिंदे का इंतजार सा कुछ
Parinde ka Intzaar Sa Kuchh
- 2008
शुद्धिपत्र
Shuddhipatra
- 2012
जिनकी मुट्ठियों में सुराख था
Jinki Mutthiyon Mein Surakh Tha
- 2014
जिसे जहां नहीं होना था
Jise Jahan Nahin Hona Tha
- 2016
इब्तिदा के आगे खाली ही
Ibtida Ke Aage Khali Hi
- 2021
खेला
Khela
- 2023
हुकुम देश का इक्का खोटा
Hukum Desh Ka Ikka Khota
- 2024
Neelakshi’s quotes
उसमें बूंद भर भी चटक अक्षर नहीं थे।
दबे और पुराने किस्म के वर्ण थे वहाँ।
'उखड़ चुके और ताजा उगे' के बीच की छपाई थी उधर।
वह ऐसा सरल भी न था कि तुकबंदी की शक्ल में उसे याद किया जा सके।
कठिन तो बिल्कुल भी नहीं कि किसी मायने पर आकर ठिठका जाए।
उसे उलट कर पढ़ें या कि सुलट कर, अक्षरों का हिसाब एक बराबर ठीक ही बैठता था।
उस पर मोड़ थे पर निशान ऐसे नहीं कि कोई अपनी हथेली की किसी रेखा का जुड़वा मान बैठे उन लकीरों को।
वह तरख भी हो सकता था पर ऐसा नहीं कि उस पर कोई स्मृति छोड़ देने को किसी का मन ही ललक जाए।
कभी-कभी वह नष्ट हुआ सा भी दिखता था। कभी इतना तुरंत जन्मा सा कि उसे डर लगता था कि कहीं कच्ची स्याही ही न लेपा जाए उससे।"— Neelakshi Singh