नीलाक्षी सिंह
नीलाक्षी सिंह (जन्म 17 मार्च 1978) हिन्दी की समकालीन कथाकार, उपन्यासकार हैं। बिहार के छोटे से कस्बे में जन्मी नीलाक्षी की प्रारंभिक शिक्षा बिहार के कई शहरों में हुई और इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक की उपाधि ली। वर्तमान में वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कार्यरत हैं। इनके चार कहानी संग्रह, दो उपन्यास और कथेतर गद्य की एक किताब प्रकाशित है। इन्होंने हाल में नॉर्वे के प्रसिद्ध क्लासिक उपन्यास- The Ice Palace का हिन्दी अनुवाद किया है, जो प्रकाशनाधीन है। इन्हें साहित्य अकादमी स्वर्ण जयंती युवा पुरस्कार सहित कई पुरस्कार प्राप्त हैं।
"विस्मृति और स्मृति के बीच वाली चीज ही एक लेखक का हासिल थी" -नीलाक्षी सिंह
The thread between oblivion and memory was a writer’s treasure…
“दीप्ति सकलानी उसे देख रही थी। प्रश्नवाचक चिह्न बन कर। अमिय रस्तोगी ने ऐन वक्त पर दिमाग से काम लिया। उसने अपने आप को विस्मयादिबोधक निशान बना लिया। दो प्रश्नवाचक चिह्न एक-दूसरे की तरफ देखते हुए नुकीले आधार पर टिके एक पक्के शून्य की रचना कर डालते।”- नीलाक्षी सिंह
Deepti Saklani was looking at him like a question mark. , Amiya Rastogi used his brain at the right time and transformed himself into an exclamation mark. Otherwise, two question marks looking at each other would have formed a solid zero resting on a pointed base.
नीलाक्षी सिंह की पुस्तकें
Latest Title
Hindi Translation of Norwegian Classic – “The Ice Palace” by Tarjei Vesaas. The novel won the The Nordic Council’s Literature Prize in 1964.
“मुझे नहीं पता, चमक और कौंध तुम्हारी आँखों से मुझ तक आती थी या मेरी आंखो से उगकर तुम्हारी नजर तक जाती थी या मुझसे ही निकलकर सिर्फ तुम में, फिर आईने के इस टुकड़े में, फिर इससे निकल कर वापस दुनिया में प्रवेश पाती थी। इस रहस्य का कोई जवाब, कोई बयान कभी हो ही नहीं सकता था”– इसी किताब से।