Neelakshi Singh

Neelakshi Singh (born 17 March 1978) is an Indian novelist and short story writer in the Hindi language. She is known for her layered writing with multi faced characters. Exploring the beauty of ordinary and identifying the dark spots of life are the essence of her writing.

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“उपस्थिति सिर्फ मेरे कपड़ों की ही थी और मैं दरअसल एक सुनी सुनाई चीज भर थी”

All that existed in the world were my clothes, and I was actually just a hearsay.

घर एक कमरे का था। घर में एक कमरा था। सामान एक एक मिलाकर कई थे। वह घर की चौथाई भर जगह में रहती थी। बाकी जगह सामानों के लिए थी। वह लड़की कभी-कभी उन सामानों में भी रह लेती थी और अक्सर सामान भी उसके भीतर जगह बनाने लगते थे। यानी अब अगर कभी घर न भी रहता तो वह और घर के सामान, एक- दूसरे में जगह बनाकर फेरा- फेरी रह ले सकते थे। इस तरह से उनकी दुनिया में घर, बेघर हुआ सा ही रहता था।

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Neelakshi Singh

The journey so far...

Neelakshi Singh

An Indian  Hindi- language novelist, short-story and non-fiction writer 

The author of several short stories, two novels and one non-fiction title. Translator of classical novel  “The Ice Palace” in Hindi.

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Storyline

परिंदे का इंतजार सा कुछ

Parinde ka Intzaar Sa Kuchh

शुद्धिपत्र

Shuddhipatra

जिनकी मुट्ठियों में सुराख था

Jinki Mutthiyon Mein Surakh Tha

जिसे जहां नहीं होना था

Jise Jahan Nahin Hona Tha

इब्तिदा के आगे खाली ही

Ibtida Ke Aage Khali Hi

खेला

Khela

हुकुम देश का इक्का खोटा

Hukum Desh Ka Ikka Khota

बरफ महल

Baraf Mahal

(Translation of “The Ice Palace” by Tarjei Vesaas)

Neelakshi’s quotes


"वह लड़का एक सादा पाठ था।
उसमें बूंद भर भी चटक अक्षर नहीं थे।
दबे और पुराने किस्म के वर्ण थे वहाँ।
'उखड़ चुके और ताजा उगे' के बीच की छपाई थी उधर।
वह ऐसा सरल भी न था कि तुकबंदी की शक्ल में उसे याद किया जा सके।
कठिन तो बिल्कुल भी नहीं कि किसी मायने पर आकर ठिठका जाए।
उसे उलट कर पढ़ें या कि सुलट कर, अक्षरों का हिसाब एक बराबर ठीक ही बैठता था।
उस पर मोड़ थे पर निशान ऐसे नहीं कि कोई अपनी हथेली की किसी रेखा का जुड़वा मान बैठे उन लकीरों को।
वह तरख भी हो सकता था पर ऐसा नहीं कि उस पर कोई स्मृति छोड़ देने को किसी का मन ही ललक जाए।
कभी-कभी वह नष्ट हुआ सा भी दिखता था। कभी इतना तुरंत जन्मा सा कि उसे डर लगता था कि कहीं कच्ची स्याही ही न लेपा जाए उससे।"— Neelakshi Singh